प्राचीन भारत का इतिहास (Ancient . Indian History in Hindi)
ई० पू० छठी शताब्दी में भारतीय राजनीति में एक नया परिवर्तन दृष्टिगत होता है। वह है-अनेक शक्तिशाली राज्यों का विकास, अधिशेष उत्पादन, नियमित कर व्यवस्था ने राज्य संस्था को मजबूत बनाने में योगदान दिया।
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सामरिक रूप से शक्तिशाली तत्वों को इस अधिशेष एवं लौह तकनीक पर आधारित उच्च श्रेणी के हथियारों से जन से जनपद एवं साम्राज्य बनने में काफी योगदान मिला
महाजनपद (16 Mahajanapadas) और उनकी राजधानी – छठी शताब्दी ईo पूo भारत में सोलह महाजनपदों का अस्तित्व था। इसकी जानकारी बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय और जैन ग्रन्थ भगवतीसूत्र से प्राप्त होती है। तमिल ग्रन्थशिल्पादिकाराम में तीन महाजनपद – वत्स, मगध, अवन्ति का उल्लेख मिलता है।
मगध प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों में से एक था और मोटे तौर इसका विस्तार आधुनिक बिहार और पश्चिम बंगाल के अधिकांश जिलों तक था
इन 16 महाजनपदों में से 14 राजतंत्र और दो (वज्जि, मल्ल) गणतंत्र थे। बुद्ध काल में सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद – वत्स, अवन्ति, मगध, कोसल।
गांधार : राजधानी तक्षशिला। पाकिस्तान स्थित पश्चिमोत्तर क्षेत्र रावलपिंडी से 18 मील उत्तर की ओर और इस्लामाबाद से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफगानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र ही गांधार राज्य के अंतर्गत आता था। इस जनपद में वर्तमान पेशावर, रावलपिण्डी और कुछ कश्मीर का भाग भी शामिल था. तक्षशिला इसकी राजधानी थी. गांधार का राजा पुमकुसाटी गौतम बुद्ध और बिम्बिसार का समकालीन था. उसने अवंति के राजा प्रद्योत से कई युद्ध किए और उसे पराजित किया. इसकी राजधानी विद्या का केंद्र था. देश-विदेश से विद्यार्थी यहाँ शिक्षा प्राप्त करने आते थे.
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गंधार जनपद |
गंधार का अर्ध होता है सुगंध। गांधारी गांधार देश के 'सुबल' नामक राजा की कन्या थीं। क्योंकि वह गांधार की राजकुमारी थीं, इसीलिए उनका नाम गांधारी पड़ा। पुराणों (मत्स्य 48।6; वायु 99,9) में गंधार नरेशों को द्रुहु का वंशज बताया गया है। ययाति के पांच पुत्रों में से एक द्रुहु था। ययाति के प्रमुख 5 पुत्र थे- 1.पुरु, 2.यदु, 3.तुर्वस, 4.अनु और 5.द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है।
गांधार महाजनपद के प्रमुख नगर थे- आज के पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफगानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र उस काल में भारत का गंधार प्रदेश था। आधुनिक कंदहार इस क्षेत्र से कुछ दक्षिण में स्थित था। अंगुत्तरनिकाय के अनुसार बुद्ध तथा पूर्व-बुद्धकाल में गंधार उत्तरी भारत के सोलह जनपदों में परिगणित था। सिकन्दर के भारत पर आक्रमण के समय गंधार में कई छोटी-छोटी रियासतें थीं, जैसे अभिसार, तक्षशिला आदि। मौर्य साम्राज्य में संपूर्ण गंधार देश सम्मिलित था। पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा तक्षशिला इसकी राजधानी थी। इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा। |
* कंबोज : आधुनिक अफगानिस्तान; राजधानी राजापुर। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार कंबोज जनपद सम्राट अशोक महान का सीमावर्ती प्रांत था। कंबोज देश का विस्तार कश्मीर से हिन्दूकुश तक था। इसके दो प्रमुख नगर थे राजपुर और नंदीपुर। राजपुर को आजकल राजौरी कहा जाता है। पाकिस्तान का हजारा जिला भी कंबोज के अंतर्गत ही था। कंबोज के पास ही गांधार जनपद था। कंबोज उत्तरापथ के गांधार के निकट स्थित था जिसकी ठीक-ठाक स्थिति दक्षिण-पश्चिम के पुंछ के इलाके के अंतर्गत मानी जा सकती है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार कंबोज वाल्हीक और वनायु देश के पास स्थित है। आधुनिक मान्यता के अनुसार कश्मीर के राजौरी से तजाकिस्तान तक का हिस्सा कंबोज था जिसमें आज का पामीर का पठार और बदख्शां भी हैं। बदख्शां अफगानिस्तान में हिन्दूकुश पर्वत का निकटवर्ती प्रदेश है और पामीर का पठार हिन्दूकुश और हिमालय की पहाड़ियों के बीच का स्थान है।
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कम्बोज जनपद |
कनिंघम ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'एंशेंट जियोग्राफी ऑव इंडिया' में राजपुर का अभिज्ञान दक्षिण-पश्चिम कश्मीर के राजौरी नामक नगर (जिला पुंछ, कश्मीर) के साथ किया है। यहां नंदीनगर नामक एक और प्रसिद्ध नगर था। सिकंदर के आक्रमण के समय कंबोज प्रदेश की सीमा के अंतर्गत उरशा (पाकिस्तानी जिला हजारा) और अभिसार (कश्मीर का जिला पुंछ) नामक छोटे-छोटे राज्य बसे हुए थे। जिन स्थानों के नाम आजकल काबुल, कंधार, बल्ख, वाखान, बगराम, पामीर, बदख्शां, पेशावर, स्वात, चारसद्दा आदि हैं, उन्हें संस्कृत और प्राकृत-पालि साहित्य में क्रमश: कुंभा या कुहका, गंधार, बाल्हीक, वोक्काण, कपिशा, मेरू, कम्बोज, पुरुषपुर (पेशावर), सुवास्तु, पुष्कलावती आदि के नाम से जाना जाता था। |
कुरु:
महाभारत काल के पूर्व दक्षिण कुरुओं का राज्य हिन्दुकुश के आगे से कश्मीर तक था। बाद में पांचालों पर आक्रमण करके उन्होंने अपना क्षेत्र विस्तार किया। महाभारत काल में कुरुओं का क्षेत्र था मेरठ और थानेश्वर के आसपास था क्षेत्र और राजधानी थी पहले हस्तिनापुर और बाद में इन्द्रप्रस्थ। बौद्ध कल में यह संपूर्ण क्षेत्र कुषाणों के अधीन हो चला था। |
* पंचाल : बरेली, बदायूं और फर्रूखाबाद; राजधानी अहिच्छत्र तथा काम्पिल्य। इसके नाम का सर्वप्रथम उल्लेख यजुर्वेद की तैत्तरीय संहिता में 'कंपिला' रूप में मिलता है।
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पांचाल जनपद और उसके बारे में |
पांडवों की पत्नी, द्रौपदी को पंचाल की राजकुमारी होने के कारण पांचाली भी कहा गया। कनिंघम के अनुसार वर्तमान रुहेलखंड उत्तर पंचाल और दोआबा दक्षिण पंचाल था। पांचाल को पांच कुल के लोगों ने मिलकर बसाया था। यथा किवि, केशी, सृंजय, तुर्वसस और सोमक। पंचालों और कुरु जनपदों में परस्पर लड़ाई-झगड़े चलते रहते थे। |
* कोशल : अवध; राजधानी साकेत और श्रावस्ती।
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कोसल जनपद के बारे में |
इन जनपद की सीमाएँ पूर्व में सदानीर नदी (गण्डक), पश्चिम में पंचाल, सर्पिका या स्यन्दिका नदी (सई नदी) दक्षिण और उत्तर में नेपाल की तलपटी थी. सरयू नदी इसे (कोसल जनपद को) दो भागों में विभाजित करती थी. एक उत्तरी कोसल जिसकी राजधानी श्रावस्ती थी और दूसरा दक्षिणी कोसल, जिसकी राजधानी कुशावती थी. |
* शूरसेन : मथुरा के आसपास का क्षेत्र; राजधानी मथुरा।
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सुरशेन जनपदऔर उसके बारे में |
मथुरा और उसके आसपास के क्षेत्र इस जनपद में शामिल थे. आधुनिक मथुरा नगर ही इसकी राजधानी था. बौद्ध ग्रन्थों में अयन्तिपुत्र शूरसेन राज्य का उल्लेख मिलता है. वह बौद्ध धर्म का अनुयायी और संरक्षक था.
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* काशी : वाराणसी; राजधानी वाराणसी।
यह जनपद वज्जि संघ के उत्तर में स्थित एक पहाड़ी राज्य था. इसके दो भाग थे जिनमें एक की राजधानी कुशीनगर (जहाँ महात्मा बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ) और दूसरे भाग की राजधानी पावा (जहाँ वर्धमान महावीर को निर्वाण मिला) थी. |
मगध :
दक्षिण बिहार, राजधानी गिरिव्रज (आधुनिक राजगृह)।(यह पाँच पहाड़ियों से घिरा नगर था । कालान्तर में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित हुई ।)
बौद्ध साहित्य में इस राज्य की राजधानी (गिरिव्रज या राजगीर) और निवासियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है. वर्तमान पटना और गया जिलों के क्षेत्र इसके अंग थे. अथर्ववेद में भी इस राज्य का उल्लेख है
बौद्ध साहित्य में इस राज्य की राजधानी (गिरिव्रज या राजगीर) और निवासियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है. वर्तमान पटना और गया जिलों के क्षेत्र इसके अंग थे. अथर्ववेद में भी इस राज्य का उल्लेख है.
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* वत्स :
प्रयाग (इलाहाबाद) और उसके आसपास; राजधानी कौशांबी
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वत्स जनपद और उसके बारे में |
काशी के पश्चिम भाग में प्रयाग के आसपास क्षेत्र में यह जनपद स्थित था. कौशाम्बी इसकी राजधानी थी. बुद्ध के समय में इसका शासक उदयन था. |
अंग
यह महाजनपद मगध राज्य के पूर्व में स्थित था. इसकी राजधानी चंपा थी. आधुनिक भागलपुर और मुंगेर का क्षेत्र इसी जनपद में शामिल था.
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अंग जनपद की राजधानी |
गौतम बुद्ध के समय में इस राज्य का मगध के साथ संघर्ष चलता रहा. संभवतः प्रारभ में अंग ने कुछ समय के लिए मगध को पराजित कर अपने में शामिल कर लिया. लेकिन शीघ्र ही इस जनपद की शक्ति क्षीण हो गयी और बिम्बिसार नामक शासक ने न केवल मगध को अंग से स्वतंत्र कराया बल्कि उसने अंग को भी अपने अधीन किया. कालांतर में यह राज्य मगध राज्य का ही हिस्सा बन गया.
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* मत्स्य : जयपुर; राजधानी विराट नगर।
इन जनपद की सीमाएँ पूर्व में सदानीर नदी (गण्डक), पश्चिम में पंचाल, सर्पिका या स्यन्दिका नदी (सई नदी) दक्षिण और उत्तर में नेपाल की तलपटी थी.
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मत्स्य जनपद |
सरयू नदी इसे (कोसल जनपद को) दो भागों में विभाजित करती थी. एक उत्तरी कोसल जिसकी राजधानी श्रावस्ती थी और दूसरा दक्षिणी कोसल, जिसकी राजधानी कुशावती थी.
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* वज्जि : जिला दरभंगा और मुजफ्फरपुर; राजधानी मिथिला, जनकपुरी और वैशाली।
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वज्जि जनपद के बारे में |
यह महाजनपद मगध के उत्तर में स्थित था. यह संघ आठ कुलों के संयोंग से बना और इनमें चार (विदेह, ज्ञातृक, वज्जि और लिच्छवि) कुल अधिक प्रमुख थे. विशाल इस संघ की राजधानी थी.
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* मल्ल : ज़िला देवरिया; राजधानी कुशीनगर और पावा (आधुनिक पडरौना)
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मल्ल जनपद और उसके बारे में |
यह जनपद वज्जि संघ के उत्तर में स्थित एक पहाड़ी राज्य था. इसके दो भाग थे जिनमें एक की राजधानी कुशीनगर (जहाँ महात्मा बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ) और दूसरे भाग की राजधानी पावा (जहाँ वर्धमान महावीर को निर्वाण मिला) थी. |
* चेदि :बुंदेलखंड; राजधानी शुक्तिमती (वर्तमान बांदा के पास)।
यह महाजनपद यमुना नदी के किनारे स्थित था.
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चेदि जनपद के बारे में |
यह आधुनिक बुन्देलखंड के पूर्वी भाग और उसके समीपवर्ती भूखंड में फैला हुआ था. महाभारत के अनुसार “शुक्तिमती” इसकी राजधानी थी लेकिन “चेतियजातक” के अनुसार “सोत्थिवती” इसकी राजधानी थी. महाभारत के अनुसार शिशुपाल यहीं का शासक था. |
* अवंति : मालवा; राजधानी उज्जयिनी उज्जैनी
अवंति राजतंत्र में लगभग उज्जैन प्रदेश और उसके आसपास के जिले थे. पुराणों के अनुसार पुणिक नामक सेनापति ने यदुवंशीय वीतिहोत्र नामक शासक की हत्या करके अपने पुत्र प्रद्योत को अवन्ति की गद्दी पर बैठाया. इसके अंतिम शासक नन्दवर्धन को मगध के शासक शिशुनाग ने पराजित किया और इसे अपने साम्राज्य का अंग बना लिया. यह महाजनपद दो भागों में विभाजित था. उत्तरी भाग की राजधानी उज्जयिनी और दक्षिणी भाग की राजधानी महिष्मति थी.
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* अश्मक : गोदावरी घाटी; राजधानी पांडन्य।
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अश्मक जनपद और उसके बारे में |
यह राज्य गोदावरी नदी के किनारे पर स्थित था. पाटेन अथवा पोटन इसकी राजधानी थी. पुराणों के अनुसार इस महाजनपद के शासक इक्ष्वाकु वंश के थे. जातक कथाओं में भी इस जनपद के अनेक राजाओं के नामों की जानकारी मिलती है. |
मगध साम्राज्य की स्थापना और विस्तार
महाजनपदों के प्रमुख शासक (Chief Rulers of Mahajanapadas)
महाजनपद प्रमुख शासक
मगध बिंबिसार, अज्ञात शत्रु, शिशुनाग
अवन्ति चंडप्रद्योत
काशी बानर, अश्वसेन
कोसल प्रसेनजित
अंग ब्रहमदत्त
चेदी उपचार
वत्स उदयन
कुर कोरव्य
मत्स्य विराट
शूरसेन अवन्तिपुत्र
गंधार चंद्र्वर्मन, सुदक्षिण
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प्राचीन जनपद और महाजनपदों की उपरोक्त सूची 600 ईस्वी पूर्व में बड़ी संख्या में ग्रामीण और शहरी बस्तियों के एकीकरण का प्रतीक है, जिनकी संख्या 16 थी, हालांकि अलग-अलग ग्रंथों ने इनकी संख्या भिन्न भिन्न बताई हैं।
मगध साम्राज्य के संस्थापक “जरासंध” और “बृहद्रथ” थे लेकिन इसका विकास “हर्यक” वंश के समय में शुरू हुआ था, जबकि इसका विस्तार “शिशुनाग” एवं “नंद” वंश के समय हुआ था| अंततः “मौर्य” वंश के शासनकाल में मगध साम्राज्य अपने सर्वोच्च मुकाम पर पहुँच गया था|
शिशुनाग वंश
1. शिशुनाग “नागदशक” का मंत्री था जिसे प्रजा ने राजा के रूप में चुना था|
2. उसने अवन्ति के प्रद्योत राजवंश को नष्ट किया था जिससे मगध और अवन्ति के बीच 100 सालों से चल रही प्रतिद्वंद्विता समाप्त हुई थी|
3. “कालाशोक (काकवर्ण)”, शिशुनाग का उत्तराधिकारी था|
4. उसने “वैशाली” के स्थान पर “पाटलिपुत्र” को अपनी राजधानी बनाया और उसके संरक्षण में “द्वितीय बौद्ध संगीति” का आयोजन वैशाली में किया गया था|
मगध साम्राज्य के उदय के कारण
1. मगध साम्राज्य का उदय इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण हुआ क्योंकि राजगृह और पाटलिपुत्र दोनों रणनीतिक स्थान पर स्थित थे|
2. प्राकृतिक संसाधनों विशेष रूप से लोहा का बहुतायत मात्रा में उपलब्धता थीं जिससे उन्नत और प्रभावी हथियार बनाने में मदद मिली|
3. भरपूर कृषि उपज क्योंकि मगध साम्राज्य उपजाऊ गंगा के मैदान में स्थित था|
4. गांव और शहरों के उथान और धात्विक मुद्रा के कारण व्यापार और वाणिज्य को बल मिला था|
5. मगध समाज पर राजाओं का अपरंपरागत चरित्र|
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